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शिकारी की नज़र / नचिकेता
Kavita Kosh से
दुनिया को
निरखो न शिकारी की नज़रों से
वैसे तो दुनिया में ढेरों
रंग भरे हैं
यहाँ खेत
खलिहान, नदी, पर्वत, दर्रे हैं
इन्हें बचाना होगा ज़ालिम
राहबरों से
यहाँ महकते फूल
चमकते मुक्त पखेरू
दूध-भरे थन चूस रहे हैं
भूखे लेरू
इन्हें नहीं डर है
आने वाले ख़तरों से
जीना मुश्किल है
फिर भी दुनिया सुन्दर है
रूप, गंध, स्पर्श, ध्वनि
रस का आकर है
मत नोंचो
परवाज़ स्वप्न के
खुले परों से ।