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शिखण्डिनी का प्रतिशोध-9 / राजेश्वर वशिष्ठ

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महाभारत की कथाओं में नायक रहेंगे कृष्ण,
अर्जुन, भीष्म पितामह, कर्ण और दुर्योधन,
मैं जानता हूँ बहुत लोग याद भी नहीं करेंगे मुझे
आज इसीलिए मैं चुपचाप खड़ा हूँ
भीष्म के ध्वजा-कटे रथ के पास !

मैं क्या करूँगा, शर-शैया पर लेटे
भीष्म की परिक्रमा कर,
मुझे आवश्यकता नहीं है, अर्जुन की तरह
किसी आशीर्वाद की !

हो सकता है भीष्म कह दें,
धर्म नष्ट हो जाएगा स्त्री की परछाई से
धर्म के पास उनकी तरह,
इच्छा-मृत्यु का वरदान भी तो नहीं !

भीष्म तो अपने पीछे
उस धर्म को ही छोड़ कर जाना चाहते हैं
जिसकी सबसे अधिक खिल्ली उड़ाई
उनके कौरव-पुत्रों ने ही
और उन्हें जीने के लिए सदा
अपनी आत्मा पर रखना पड़ा पत्थर !

अब कब तक लिए रहूँगा
स्थूणाकर्ण यक्ष की पुरुष देह
मेरी मृत्यु निश्चित है
आने वाले दिनों के युद्ध में
और उसे भी प्रतीक्षा होगी
अपनी पुरुष देह की,
प्रतीक्षा होगी
नारी से पुरुष बनने की !

उससे हँस कर पूछूँगा --
शोषक को कैसा लगा
शोषित बन कर ?

सच कहूँ,
मुझे ज़रा भी इच्छा नहीं है मोक्ष की,
मुझे चाहिए
जीवन का अभिशाप !

मैं बार-बार बनना चाहूँगी स्त्री
और जूझना चाहूँगी
उस पुरुष मानसिकता से
जिसने हर युग में किया है स्त्री का शोषण !

उसे स्वर्ण और रत्नों की तरह ही
जुए में लगाया गया है दाँव पर
और फिर भी कहलाए हैं धर्मराज !

मैं चाहूँगा भस्म हो जाएँ वे सभी धर्म-ग्रन्थ
जिनमें स्त्रियाँ बना दी गई हैं देवियाँ
और उन से छीन लिया गया है
मनुष्य की तरह जीने का अधिकार !

वे सभी ग्रन्थ
मानवता की व्याख्या के लिए नहीं
पुरुषों के द्वारा
अपनी लिप्सा और वासना की पूर्ति के
साधनों के रूप में लिखे गए थे !

आज इस काँपती काली रात में
जी भर कर रोएगा शिखण्डी
जिसका अपमान किया उसके प्रेमी शाल्व ने
जिसकी सहायता के लिए आए परशुराम भी
और अन्ततः हो गए आश्वस्त
कि वे भी इस पुरुष-समाज में
न्याय नहीं दिला सकते एक स्त्री को !

आज रोएगा शिखण्डी
उन पुरुषों के लिए भी
जो कभी नहीं समझ पाएँगे
स्त्री जीवन की त्रासदी
और करेंगे इस नाम का दुरुपयोग
किसी क्लीव या नपुंसक पुरुष के लिए !

इन्हें बताओ द्वेपायन वेदव्यास
अम्बा अपने सभी जन्मों में स्त्री ही तो रही
उसे कुछ वर्षों के लिए
पुरुष का शरीर अवश्य पहनना पड़ा
क्योंकि त्रिदेव नहीं चाहते थे भीष्म की मृत्यु हो
किसी स्त्री शरीर के माध्यम से
पर भीष्म तो जानते थे कि मैं अम्बा ही हूँ !

इस महाभारत के युद्ध में
कल से मुझे लड़ना होगा
अपनी ही मृत्यु के लिए !

भरोसा रखो पृथ्वी पर रहने वाली स्त्रियो
मेरी मृत्यु के बाद
अम्बा सुगन्ध की तरह फैल जाएगी
सभी स्त्रियों की आत्मा में
कि वे जूझ सकें
सिर्फ़ अपने भरोसे
इस पुरुष सत्तात्मक समाज से !

शिखण्डी पुरुष नहीं था !