शिखण्डी युग (कविता) / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

यह युग पहले भी
आया था...
द्रोणाचार्य ने... एकलव्य का
अंगूठा कटवाया था...।
पुरुष ने शापित कर
अहल्या को-
पत्थर बनाया था...।
सीता को लांछित कर
जंगल भिजवाया था...।
राजनीति के चक्कर ने...
राम को...
बनवासी बनवाया था...
भिक्षाम देहि के लाधव से...
सीता का
हरण करवाया था...
दुर्योधन ने सत्य को-
जलाने...
लाक्षागृह बनवाया था...।
यह शिखंडी युग है
साथियों...
जिसने भीष्म पितामह को
शरों की
सेज सुलाया था...।
यह सागर मंथन है-
कि स्वयं देवों ने
शंकर को
विष पिलाया था...।
लक्ष्मी दानवों की कैद है...
जिसने देवों का
धर्म डिगाया था...
अब भी भीष्म कृष्ण
और राम
क्या पैदा नहीं होते...
होते हैं-
पर हर युग ने
उनको कारावास
दिलाया है...।

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