शिनाख़्त / सुभाष राय
तुम्हारे काले दिमाग पढ़ लिए गए हैं
डिकोड कर ली गई है झूठे जिहाद की नृशंस कूटलिपि
तुम्हें पहचान लिया गया है
तुम्हारी कटी हुई उँगलियों से, तुम्हारे ज़हरीले रक्त से
तुम्हारी विदीर्ण आँतों से, तुम्हारे चीथड़े हो गए दिमागों से
तुम ज़िन्दा भी पकड़े गए हो कई बार
कभी मुम्बई, कभी न्यूयार्क और कभी पेरिस में
कभी एलओसी पर लगी कँटीली बाड़ फान्दते हुए
तुम्हारे बयानों में दर्ज हैं तुम्हारे सारे पते
सारा बारूद, सारी गोलियाँ, टैंक और तोपें
तोरा-बोरा से एबटाबाद तक
तुम्हारी मान्दें चाहे जितनी गहरी हों
बहुत देर तक तुम्हें छिपाकर नहीं रख सकतीं
बामियान के बुद्ध पर जब तुमने गोले बरसाए
उसकी धूल दुनिया भर के आसमान में छा गई
पेशावर की क्रूर-कथा अब भी सुनाती है ख़ौफ़जदा हवा
शब्द, शान्ति और तर्क की आस्था
इतिहास के सबक और समय के सीने पर टँगी
मानवता की विरासत को
पिंजरे में बन्दकर भून देने का
तुम्हारा मनसूबा कामयाब नहीं होगा
हमने मनुष्यता के शब्द फेंके तुम्हारी ओर
लेकिन तुमने उन पर दाग़ी मिसाइलें
तुम्हें नही मालूम शब्द जितनी बार घायल हुए
उतने ही मजबूत होते चले गए