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शिमला में साँझ / सुदर्शन वशिष्ठ

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एक

यह कौन छान रह
छाज से सिन्दूर
छान रहा है
या फेंक रहा
कोई अनाड़ी।

दो

जैसे किसी ने यकायक
सिन्दूरी लैंस
आँखों में लगा दिये
चुपचाप।

तीन
कहीं लगी है आग
जिस का अक्स
झाँक्रहा छोटे बड़े शीशों में
खबरदार!

चार
जैसे तांबे का थाल
ठण्डा कर
डूबो दिया समुद्र एं
धीरे धीरे धीरे।

पाँच

जब-जब तारादेवी के पीछे
जाने लगा सूरज
शिमला लाल हुआ है
सूरज को रात भी
पास रखना चाहता है।

छः
जब माल रोड़ पर
निकलते हैं नये नवेले जोड़े
सूरज शरमा कर

लाल हो
छिप जाता
पहाड़ी के पीछे।

सात
तारा देवी की पहाड़ी
बनी एक पैंटिंग
कई रंग आकारों के बादल
घ्ल गये मॉड्रन स्टाईल में
बीच में कभी कभी चपकता सूरज
देखते देखते कई पैंटिंग्ज़ बनीं मिट्टी
कितने में बेचेंगे भाई।

आठ

कुछ देर बाद
माचिस को डिबियों में
जल रहीं थी मोमबत्तियाँ।