भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिमला / कुँवर दिनेश
Kavita Kosh से
बड़ा ही नाज़ुक मिज़ाज है―
शहर मेरा।
ज़रा धूप हुई तेज़
कि फूट पड़ता है―
शहर मेरा।
ज़रा बादल हुए जमा
कि उदास हो जाता है―
शहर मेरा।
ज़रा हवा बही तेज़
कि थिरक जाता है―
शहर मेरा।
ज़रा बर्फ़ क्या गिरी
कि दुबक जाता है―
शहर मेरा।
बड़ा ही नाज़ुक मिज़ाज है―
शहर मेरा।