शिवकुटी लाल वर्मा / परिचय
शिवकुटी लाल वर्मा का गुरुवार 18 जुलाई 2013 को निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। नई कविता के इस सशक्त हस्ताक्षर के जाने से हिंदी साहित्य जगत शोकाकुल हो उठा। इलाहाबाद स्थित उनके आवास पर हिंदी साहित्य प्रेमी और साहित्यकार शोक संवेदन व्यक्त करने पहुंचे। कूल्हे की हड्डी टूटने के चलते वह अस्वस्थ चल रहे थे।
इलाहाबाद के चाहचंद मुहल्ले में जन्में शिवकुटी लाल एजी ऑफिस में लंबे समय तक कार्यरत रहे। वह 1994 में सुपरवाइजर पद पर सेवानिवृत्त होने के बाद जगमल का हाता चकमिरातुल में रहते थे। शहर की साहित्यिक गोष्ठियों में उनकी उपस्थिति नए रचनाकारों को प्रेरित करती रही है। उनकी पहली कविता ’निकष-2’ में 1956 में छपी थी।
शिवकुटी लाल के नजदीक रहे हरिश्चंद्र पांडेय ने बताया कि उन्हें अपनी तरह के नई कविता के अलग कवि थे। इनकी अलग शिल्प के लिए पहचान की जाएगी। हरिश्चंद्र पांडेय ने बताया कि वह मलयज और श्रीराम वर्मा के नजदीकी मित्रों में से थे। वह साहित्यिक संस्था परिमल के इलाहाबाद से आखिरी सदस्य थे। छंद के बंधन से मुक्त नई कविता के इस रचनाकार को बेहतरीन अनुवादक होने का भी गौरव हासिल है। उन्होंने तीन विदेशी कवियों इंडोनेशिया के डब्ल्यु एस रेनजा, सीजर पावेज व वास्को की कविताओं का हिंदी अनुवाद किया है। उनके कविता संग्रह 'पहचान श्रृंखला' में (1974), 'हार नहीं मानूंगा' (1980), 'समय आने दो' (1995) और आखिरी कविता-संग्रह 'सितारे साम्राज्यवादी नहीं होते' (2013) पाठकों के बीच हैं।