भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिव जी हीरो बनोॅ हो-48 / अच्युतानन्द चौधरी 'लाल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बधैया

सभ्भे लेॅ लेॅ केॅ बधैया सखि हे आबी गेलै ना
सखि हे आबी गेलै ना
सीरी राम के जनम सुनि आबी गेलै ना
सखि हे आबी गेलै ना
राजा लुटावये माल खजनमा रानी लुटावये अनधन सोनमा
हे आबी गेलै ना
सखि हे लेॅ लॅे केॅ बधैया सखि आबी गेलै ना
घर घर नगरी में बजये बधावा, सुनि सुनि लोगवा के हरसे परनमा
हे आबी गेलै ना सभ्भे लेॅ लेॅ केै बधैया सखि हे आबी गेलै ना
नगरी के लोग सभ्भे दैछै आसीस मिली, रानी हे जीहौं तोरोॅ चारो ललनमा
हे जुग जुग जीहौं ना, रानी चारो ललनमा हे जुग जुग जीहौं ना।

लोरी

औंठी पौंठी फूल पान बीचोॅ में गोसांय थान
दादा दादी के बीचोॅ में नुनियां चमकेॅ जेना चान
सांझ भेलै डुबलै भान
उगलै आकाशोॅ में चान
सूतें नुनियां जागी जइहें
जखनी भेॅ जइतै बिहान
जुग जुग जीयेॅ नुनियां हमरी
जब तक सूरुज जब तक चान
शंकर जी सें ॅलालॅ आय
मांगैछै बस एतने बरदान।