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शिव शीश सजा नाग गंग-धार ही नहीं / रंजना वर्मा

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शिव शीश सजा नाग गंग - धार ही नहीं
कल्याण में नित रत करे उपकार ही नहीं

उस शम्भु की महिमा अनन्त कौन कह सके
पूजें सदैव देव भी संसार ही नहीं
 
हर डूबते को हाथ बढ़ा कर बचा लिया
आया जो शरण में दिया दुत्कार ही नहीं
 
जो विश्व के कल्याण हेतु रूप धारता
जग का जनक है मात्र निराकार ही नहीं
 
था जो सती वियोग में नटराज बन गया
लय विश्व करे स्नेह का अवतार ही नहीं

जिसने भी द्वार आके सर अपना झुका दिया
रखता है कुशल- क्षेम भी सत्कार ही नहीं

मृत्युंजयी है मौत को दासी बना चुका
करता वो अशुभ चाह को स्वीकार ही नहीं