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शिशिर का भोर / अज्ञेय
Kavita Kosh से
उतना-सा प्रकाश
कि अँधेरा दीखने लगे,
उतनी-सी वर्षा
कि सन्नाटा सुनाई दे जाए;
उतना-सा दर्द याद आए
कि भूल गया हूँ,
भूल गया हूँ
हाइडेलबर्ग
25 अक्टूबर, 1970