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शिशिर के जगतै भाग / कुमार संभव
Kavita Kosh से
शिशिर के जगतै भाग।
आगू में ही ते खाड़ो छै फागुन फाग
शिशिर के जगतै भाग।
धूपोॅ के साथें बहै पछिया बयार छै
लŸार परछŸाी गीत गाबै मल्हार छै
तनफन कद्दू के लत में भी भरलोॅ छै अनुराग
शिशिर के जगतै भाग।
मन भर नाचै, शिशिर करै अठखेली
बिहसै हवा संग लागै पगलैली
धरती संग शिशिर के सजतै सुहाग
शिशिर के जगतै भाग।
बूट, खेसाड़ी सभे पकी-पकी गेलै
गहुमो के बाली भी झरझर बोलै
खेतोॅ में गाबै शिशिर मनहर राग
शिशिर के जगतै भाग।
नाको के नकबेसर मांगै कागा
सगुनोॅ के बदला लेतै हतभागा
मुन्हाँ पर उड़ि-उड़ि बैठै छै काग
शिशिर के जगतै भाग।