के कहै छै कि
शिशिर के रात हाथ भरी के होय छै
बाँस भरी लम्बा होय छै
शिशिर केरोॅ रात
विषविषी वाला ठण्ड केॅ
चारो दिस छिरयैतेॅ शिशिर
खुद अपने ठण्ड सेॅ
दाँत किटकिटैतेॅ रहै छै।
ई हिमालय सेॅ ऐलोॅ छै
की हिमालय ही बहै छै?
पता नै एकरोॅ डरोॅ तेॅ
दिन ऐतेॅ की नै,
ऐवौ करतै, तेॅ कत्तेॅ देरी लॅे।
कहै छै-
शिशिर के ऐथैं
दिन के आयु घटी जाय छै
हाथोॅ के भाग्यरेखा शायते दिखाय छै।