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शिशिर फिसिर गिरी / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
शिशिर फिसिर गिरी, घुरी फिरी घिरी-घिरी।
मन में आनंद भरी, दिल के रिझाय छै॥
सोलहो शृंगार करी, देहरी औ द्वार फिरी।
चारों ओर फिरी-फिरी, सपना सजाय छै॥
कानन कुण्डल धरी, झूलना झूलन घरी।
आँखी में सुन्दर भरी, कजरा लगाय छै॥
मन में जे प्रीत भरी, रीत भरी डरी-डरी।
घुमत फिरत घरी, बड़ी घबराय छै॥
भुवन सुमन भरी, मधुवन रस भरी।
मन अकुलाय घरी, सजना बुलाय छै॥