शिशिर में उकठोॅ लागै दिन।
माघोॅ के रौदोॅ भी लागै कŸो क्षीण
शिशिर में उकठोॅ लागै दिन।
सांपे रं ठंडा हमरा धूप बुझाबै
बरफोॅ जैसनों कनकन हवा सिसियाबै
लागै सौसे देहोॅ में चुभलोॅ छै पिन
शिशिर में उकठोॅ लागै दिन।
पŸाा झरला से छै कठुवैलो भँभरा
आस वसंत के ही छै आबे हमरा
शिशिर के ई दोरस पल जिवोॅ बहुत कठिन
शिशिर में उकठोॅ लागै दिन।
रात पिया मोरा सपना में अइलै
चूमी ठोरोॅ के बोललै मुस्कैलै
भारी दुख छै आधे में टूटलै नीन
शिशिर में उकठोॅ लागै दिन।