भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिशिर / शिरीष कुमार मौर्य
Kavita Kosh से
शिशिर में
बूढ़े और बीमार पक्षी मर जाते हैं
नई कोंपलें
झुलस जाती हैं पाले से
शिशिर में
शुरुआत और अख़ीर दोनों को
सँभालना होता है
शिशिर की क्रूरता
ग्रीष्म में बेहतर समझी और समझाई
जा सकती है
इसे इस तरह समझिए कि
जब किसी भी तरह
घर नहीं बना पातीं अपने उत्तरजीवन के
ससुराली शिविर को
चैत में
विकट कलपते हृदय से
स्त्रियाँ गाती हैं
मायके के शिशिर को