शिशुपाल वध / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
जग मेॅ विभिन्न प्रकार रोॅ सुख प्रचलित होय छै
शारीरिक ऐन्द्रियिक आन्तरिक बौद्विक होवे छै ।
शरीर बलवान इन्द्रियाँ निरोग विषय वस्तु रोॅ सुख होवै
धन परिवार, साम्राज्य मान प्रतिष्ठा मन संतुष्टि होवै ।
विभिन्न चीजोॅ रोॅ विज्ञान, राजनीतिक, समाजनीति आदि बोध होवै
सांसारिक दृष्टि सेॅ व्यक्ति पूर्ण रूप सेॅ सुखी नै होवै ।
देवता रोॅ कृपा सेॅ इच्छा मृत्यु होवेॅ पारै छौ
मतरकि सुखोॅ रोॅ सीमा कभियोॅ नै मिलै पारै छोॅ ।
संते नेॅ शास्त्रोॅ मेॅ तत्व पर शुरु सेॅ विचार करने छै
वाह्य वस्तुओॅ पर शांति नै मिले वाला छै ।
जगत रोॅ तुच्छ सुख क्षणिक सुख प्राप्त होय छै
मरुस्थल आशा जल सेॅ प्यास नै बूझै पारै छै ।
बुद्धि मन, इन्द्रियाँ सब्भै रोॅ गंतव्य कहाँ मिलै पारै छौं
है सब्भे रोॅ बिना प्राप्त होने जीवन सुफल नै होवै पारै छौं ।
बुद्धि सेॅ भगवान कृष्ण केॅ जानलोॅ जावेॅ पारै छौं
जबेॅ मन इन्द्रिय केॅ हुनकोॅ पास जाय मेॅ सामर्थ होय छै ।
वही आदमी केॅ सब्भेॅ सुख मिलै पारै छौ
हुनका पैला पर लौकिक परलौकिक दोनो पावै छै ।
भीष्म मन सेॅ भगवान रोॅ लीला अनुभव करै छेलै
इन्द्रियोॅ सेॅ सर्वत्रा हुनकोॅ स्पर्श करे छेलै ।
भीष्म केॅ कृष्ण सेॅ कत्तेॅ नेॅ प्रेम छेलै
कृष्ण रोॅ प्रति अथाह प्रेम समय-समय पर झलकै छेलै ।
धर्मराज युधिष्ठिर केरोॅ सभा बनलोॅ छेलै
भाइयोॅ पर बल पुरुष कृष्णोॅ सहायता सेॅ बनलोॅ छेलै ।
हिनकोॅ प्रेरणा सेॅ राजसूय-यज्ञ रोॅ प्रवृत्ति होलै
यज्ञ बड़ी धूम-धाम सेॅ मनैलोॅ गेलोॅ छेलै ।
कृष्ण रोॅ सहायता सेॅ भीम नेॅ जरासंध केॅ मारनै छेलै
सैकड़ों राजा कैदखाना सेॅ छुटलोॅ छेलै ।
यज्ञ रोॅ अंतिम दिन अतिथि रोॅ स्वागत-सत्कार करनै छेलै
केकरोॅ पहिनै पूजा करलोॅ जाय, प्रश्न उठलोॅ छेलै ।
यज्ञ मण्डप मेॅ वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध महात्मा भीष्म छै
युधिष्ठिर नेॅ उचित समझी केॅ पितामह सेॅ पूछै छै ।
यज्ञ मेॅ ऐलोॅ सब्भेॅ राजा केॅ अध्र्य दै रोॅ समय आभी गेलै
महानुभावोॅ रोॅ पूजा करै रोॅ उचित समय आबी गेलै ।
भीष्म बोललै युधिष्ठिर यहाँ जत्तेॅ उपस्थित होलोॅ छै
होकरा मेॅ तेज, बल, पराक्रम, ज्ञान, विज्ञान सब्भै मेॅ श्रेष्ठ छै ।
भगवान श्रीकृष्ण ! सूर्य नांखी प्रकाशित नक्षत्रा तेज छै
कृष्ण रोॅ सम्मुख तमोमय सूर्य नांखी दमकै छै ।
निस्तब्ध स्थान वायु नांखी भगवान सभा केॅ चमकै नै छै
हिनकोॅ प्रकाश सेॅ सब्भै प्रकाशित होय जाय छै ।
भीम नेॅ कृष्ण केरोॅ महिमा रोॅ यशोगान सभा मेॅ करलकै
सहदेव केॅ कहलकै, प्रधान अध्र्य कृष्णोॅ केॅ देलकै ।
सहदेव नेॅ भीष्म रोॅ तुरत आज्ञा रोॅ पालन करलकै
श्री कृष्ण केरोॅ भक्त पाण्डव नेॅ अध्र्य अर्पित करलकै ।
यज्ञ मण्डप मेॅ चेदि देशोॅ केरोॅ राजा शिशुपाल छेलै
श्रीकृष्ण रोॅ पूजा देखी केॅ सहन नै करै पारलकै ।
शिशुपाल क्रोध सेॅ तमतमाय गेलोॅ छेलै
भीष्म, युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण केरोॅ तिरस्कार करलकै ।
कृष्ण रोॅ प्रति भला-बुरा कत्ते नी बकलोॅ छेलै
शिशुपाल कहलकैµ यहाँ बड़ोॅ-बड़ोॅ धार्मिक विद्वान उपस्थित छेलै ।
हो सब्भे रोॅ सामना मेॅ कृष्ण पूजा पावै योग्य छेलै
लोगोॅ सेॅ सम्मति लेने बिना, कृष्णोॅ केॅ पूजा करने छेलै ।
भीष्म कहलकै तोहें अभी बच्चा छौ, सूक्ष्म रहस्य नै जानै पारै छौ
धर्म मर्यादा रोॅ उल्लंघन करी केॅ आपनोॅ अज्ञानता प्रकट करै छौ ।
तोहें सब्भे कृष्ण केॅ धर्मज्ञ-धर्मात्मा समझै छेलोॅ
यज्ञ मण्डपोॅ मेॅ वयोवृद्ध वासुदेव उपस्थित छेलै ।
द्रुपद, द्रोणाचार्य, व्यास भीष्म है सब्भे हाजिर छेलै
है सब्भै रोॅ सामना मेॅ कृष्ण कोन खेतोॅ रोॅ मूली छेकै ।
शिशुपाल बोले छैµ निमंत्राण दै केॅ अपमानित करलकै
शिशुपाल कहै छै ।
है पूजा कृष्ण केॅ स्वीकार नै करना चाहियोॅ,
है क्रिया-कलापोॅ मेॅ भीश्म, युधिष्ठिर केॅ नै
समझी रोॅ परिचय नै देना चाहियोॅ ।
शिशुपाल सभा सेॅ तिरछी नजरोॅ सेॅ देखलकै
आपनोॅ घर तरफ चली देलकै ।
युधिष्ठिर नेॅ शिशुपाल केॅ मिट्ठोॅ वचनोॅ सेॅ समझैलकै
मतर शिशुपाल, सब्भे राजा केरोॅ बीचोॅ सेॅ चली देलकै ।
कृष्ण रोॅ बारे मेॅ कटुवचन बोली केॅ मन पूरा करलकै
अर्धमी बनी केॅ शिशुपाल केॅ आपनोॅ जिह्वा दूश्षित करलकै ।
सभा में बुद्धिमान, विद्वान, धर्मज्ञ राजा सब बैठलोॅ छेलै
कृष्ण रोॅ पूजा देखी केॅ केकरोॅ असंतोष नै होलोॅ छेलै ।
भीष्म नेॅ रहस्य तत्व, गुण, प्रभाव महिमा केॅ जानै छै
शिशुपाल तोहें अभी बच्चा छौं, हुनकोॅ गुण तत्व नै जानै छौ ।
युधिष्ठिर केॅ शिशुपाल केॅ अनुनय-विनय करतें देखलकै
भीम नेॅ कहलकै बेटा ! कृष्ण महान पुरातन कहलकै ।
शिशुपाल ! घमंडोॅ मेॅ मातलोॅ नांखी हरदम लागै छेलै
कृष्ण नेॅ आय तक कोय राजा केॅ परास्त नै करने छेलै ।
शिशुपाल ! हम्में जे कृष्णोॅ रोॅ पूजा करनें छियै
आपनोॅ नातेदारी हितैषी समझी केॅ करनें छियै ।
भीष्म ! कहै छै- वेद वेदांगोॅ, ज्ञान, बल, दान चातुरी छै
शूरता, कीर्ति, बुद्धिमत्ता नम्रता, मर्यादा पालन, धैर्य तुष्टि छै ।
दूसरोॅ असंख्य गुण कृष्णोॅ मेॅ समैलोॅ छै
सब्भै रोॅ प्यारोॅ, आचार्य, पिता, गुरु, सृष्टि रोॅ कत्र्ता छै ।
कृष्ण रोॅ पूजा कल्याण नांखी जग उत्पत्ति संहार जानना चाहियोॅ
प्रकृति, पुरुष दोनोॅ रूपोॅ मेॅ विद्यमान रहै छै ।
सब्भै मेॅ अन्र्तयामी, सर्वव्यापी विराजमान छै
है ब्रह्माण्ड मेॅ ही सौंसे ब्र्रह्माण्ड कृष्ण पुरुषोत्तम छै ।
एक-एक रोम कूप मेॅ असंख्य ब्र्रह्माण्ड छिपलोॅ छै
समुद्र रोॅ तरंगोॅ मेॅ सीकर-कणोॅ नांखी उत्पन्न होय छै ।
बार-बार संसार मेॅ विलीन होतै रहे छै
शिशुपाल अभी बच्चा रूपोॅ मेॅ विराजमान छै ।
कृष्ण रोॅ तत्व-महत्व केॅ समझै मेॅ कठिन छै
शिशुपाल रोॅ अलावा सभा में कोय नै छै ।
सहदेव ! कहलकै, कृष्ण रोॅ पूजा सर्वथा उचित छै
नाकारै वाला रोॅ माथा पर पैर राखै रोॅ शक्ति छै ।
सहदेव केरोॅ बातोॅ केॅ कोय प्रतिवाद नै करलकै
आकाशोॅ सें पुष्पवृष्टि देवता सब्भे साधु-साधु कहलकै ।
सहदेव केॅ सब्भे नेॅ धन्यवाद देलकै
हिनी आपनोॅ बातोॅ केॅ सही अनुभव कहलकै ।
नारद कहलकै, जे कमलनयन रोॅ अराधना नै करलकै
हौ सब जीवित रहला रोॅ बादोॅ मरलोॅ नांखी छेकै ।
यज्ञ रोॅ कार्य शुरु होय गेलोॅ छै
राजा सब्भे रोॅ पूजा होय छेलै ।
शिशुपाल वहाँ सेॅ चली केॅ राजा सेॅ सलाह करलकै
लड़ाय छेड़ी केॅ विघ्न डाले रोॅ सोचलकै ।
कुछ राजा हुनकोॅ साथोॅ होय गेलै
यज्ञ मेॅ विघ्न डालै लेॅ चाहै छेलै ।
युधिष्ठिर नेॅ भीष्म पितामह सेॅ कहलकै
शिशुपाल । राजा सब्भे भड़काय केॅ युद्ध चाहलकै ।
भीष्म पितामह कहलकैµ युधिष्ठिर चिंता रोॅ बात नै छै
तोरोॅ मार्ग पहिलैं सेॅ सोचनें छै आरोॅ निष्कण्टक छै ।
सिंह केॅ सुतलोॅ देखी केॅ कुत्ता भूखै छै
उठला रोॅ बाद जानी केॅ भागै लेॅ चाहै छै ।
श्रीकृष्ण आभी होकरोॅ गतिविधि देखै छै
जबेॅ खड़ा होय जैतै, तेॅ बहकवोॅ खतम छै ।
शिशुपाल जेकरोॅ बलबूतोॅ पर खेल करी रहलोॅ छै
वहेॅ होकरोॅ खेल तमाशा खतम करै लेॅ तैयार छै ।
श्रीकृष्ण सौंसे जगत रोॅ उत्पत्ति संहारक छेकै
होकरा सेॅ मुकाबला करना बचकाना छेकै ।
भीष्म पितामह सब्भे रोॅ सामना मेॅ कही रहलोॅ छेलै
शिशुपाल हुनकोॅ बातोॅ केॅ कान लगाय केॅ सुनै छेलै ।
श्रीकृष्ण, भीष्म, पाण्डवोॅ केॅ भला-बुरा कहलकै
भीमसेन नेॅ बड़ी क्रोध सेॅ नेत्रा लाल करलकै ।
दाँतोॅ सेॅ ओठ चबावै लागलै
ललाटोॅ पर तीन रेखा देखाय पड़लै ।
शरीर काँपलै भयंकर मूर्ति देखी केॅ लोग चुप होलै
केकरोॅ बोलै रोॅ हिम्मत ने होलै ।
भीमसेन नेॅ शिशुपाल पर हमला करी देलकै
भीष्म पितामह नेॅ शांति सेॅ लम्बा हाथ फैलाय केॅ रोकलकै ।
मधुर नीति संगत वचन सेॅ भीम केॅ शांत करलकै
दुष्ट शिशुपाल हँसी केॅ बोललै, भीष्म तोंय ।
भीमसेन केॅ रोकै वास्तें कष्ट कैन्हें उठैनें छौ तोंय
भीम केॅ छोड़ी दोहोॅ हमरा पास आवै लेॅ दोहोॅ ।
है दृश्य सब्भे लोगोॅ केॅ अवलोक करै लेॅ दोहोॅ
हमरा पास ऐतै, गुमान चूर होय जैतै ।
आरोॅ हौ जली केॅ भस्म होय जैतै
भीष्म कहै छै शिशुपाल जन्मोॅ वक्त निश्चित होलै ।
किनका हाथोॅ सें मरतै मुकर्रर होय गेलोॅ छेलै
जन्म रोॅ बाद गदहा नांखी चिल्ला छेलै ।
चार ठो हाथ आरोॅ तीन गो आँख छेलै
माय-बाप आरोॅ परिवार सब्भेॅ चिंतित होय रहलोॅ छेलै ।
भयभीत होय रोॅ कोय बात नै आकाशवाणी होलोॅ छेलै
अभी हिनकोॅ मृत्यु नै होय वाला छै ।
हिनका मारै वाला पैदा होय चुकलोॅ छै
जे हमरा पुत्रोॅ रोॅ बारे मेॅ बतैतें हुनका प्रणाम करै छियै ।
किनका गोदी मेॅ गेला रोॅ बाद गायब होय जैतै
बालक रोॅ दू हाथ आरोॅ एक आँख गायब होय जैतै ।
जेकरोॅ गोदी मेॅ दोनोॅ चीज गायब होतै, वहीं मारतैं
है बात आगिन रोॅ नांखी चारोॅ ओर फैली गेलै ।
कत्तेॅ देशोॅ रोॅ राजा-रईस देखै लेॅ आबी गेलै
शिशुपाल रोॅ पिता सब्भे रोॅ यथायोग्य सत्कार करलकै ।
गोदी मेॅ दै-दै केॅ अवलोकन करलकै
हजारोॅ आदमी रोॅ गोदी मेॅ देलकै ।
तेसरोॅ आँख आरोॅ दोनोॅ ठोॅ हाथ गायब नै होय सकलै
बुआ रोॅ सामाचार सुनी केॅ एक दिन आबी गेलै ।
कृष्णोॅ रोॅ गोदी मेॅ देलकै एक आँख दोनोॅ ठो हाथ टूटी गेलै
बुआ कहलकै, तोरोॅ अपराध करै तेॅ माफ करी देभौ ।
सौ अपराध करला पर क्षमा करी देभौं
शिशुपाल रोॅ चिंता, हमरा प्रति शंका छोड़ी दोहोॅ ।
होकरा स्वच्छन्द विचरण करै लेॅ छोड़ी दोहोॅ
वरदान पावी केॅ शिशुपाल फूली केॅ कुप्पा होय गेलै ।
है आर्शीवाद पावी केॅ युद्ध करै लेॅ तत्पर होय गेलै
भरलोॅ सभा मेॅ उलूल-जलूल बढ़ी-चढ़ी केॅ बोलै लागलै ।
असभ्य नांखी बात करै रोॅ फेटा कस्सेॅ लागलै
शिशुपाल रोॅ क्रिया-कलाप सेॅ तंग आवेॅ लागलै ।
श्रीकृष्ण आपनोॅ वरदान देलोॅ वापस लै लेॅ लागलै
भीष्म रोॅ मर्म केरोॅ बात सुनी केॅ आग बबूला होय गेलै ।
क्रोध मेॅ आबी केॅ खुल्लम-खुल्ला गाली दियै लागलै
असभ्य मनुष्य नांखी बर्ताव करेॅ लागलै ।
कृष्ण केॅ बोलावोॅ, होकरा मेॅ निपटाय लेवै
होकरा सेॅ दो-दो हाथ करी केॅ पाण्डव केॅ मारी देवै ।
हम्में चीरकालीन अभिलाषा पूरा करवै
पाण्डव केॅ नेश्तनाबूत करी केॅ दम लेवै ।
शिशुपाल रोॅ साथ हमरोॅ की संबंध छै
है बात केकरोॅ सेॅ छिपलोॅ नै छै ।
जबेॅ हमरा प्रागज्योतिषपुर जाय रोॅ सामाचार जानलकै
चुपके सेॅ जाय केॅ द्वारका मेॅ आग लगाय देलकै ।
राजा भोज रवैत पर्वत पर विचरण करे छेलै
बिना कारण होकरोॅ अनुचरोॅ केॅ मारी देनेॅ छेलै ।
हमरोॅ पिता अश्वमेघ यज्ञ करै छेलै
यज्ञ में छोड़लोॅ घोड़ा केॅ चुराय लेनें छेलै ।
तपस्वी बन्धु केरोॅ स्त्राी सौवीर जाय रहलोॅ छेलै
नीचोॅ मार्ग सेॅ आक्रमण करी केॅ दुष्कर्म करी लेनें छेलै ।
कुरुष राजा रोॅ पोशाक पहिनें केॅ छली लेलकै
होकरोॅ कनियैनी केॅ धोखा दै केॅ उड़ाय लेलकै ।
बुआ रोॅ बात मानी केॅ दम साधनें छेलियै
सैकड़ोॅ अपराध आगु होलै, ने मारलियै ।
भरलोॅ सभा मेॅ भंडाफोड़ है बातोॅ रोॅ करी देलकै
शिशुपाल लज्जित ने होलै, उल्टे कृष्णोॅ रोॅ मखौल उड़ैलकै ।
सब्भे रोॅ सामना मेॅ सुदर्शन चक्र रोॅ स्मरण करलकै
श्रीकृष्ण नेॅ सुदर्शन चक्र हाथोॅ मेॅ लेलकै ।
चमकते हुए चक्र शिशुपाल रोॅ सिर धड़ सेॅ अलग होलै
जमीनोॅ पर धड़ाम सें आवाज होलै ।
शिशुपाल रोॅ शरीरोॅ सें बिजली नांखी ज्योति निकललै
पैरों केॅ चारोॅ ओर चक्कर लगाय केॅ प्रभु मेॅ समाय गेलै ।