भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शीगवाला / नारायण सुर्वे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नारायण सुर्वे  » शीगवाला


क्या लिखतो रे पोरा !
नाही चाचा -- काही हर्फ जुळवतो<ref>जोड़ता हूँ</ref>
म्हणता, म्हणता दाऊदचाचा खोलीत शिरतो<ref>खोली में घुसता है</ref>
गोंडेवली तुर्की टोपी काढून<ref>निकालकर</ref>
गळ्याखालचा घाम<ref>पसीना</ref> पुसून तो 'बीचबंद' पितो
खाली बसतो
दंडा त्याचा तंगड्या पसरून उताणा<ref>उलटा</ref> होतो ।

एक ध्यानामदी<ref>ध्यान मं रख</ref> ठेव बेटा
सबद लिखना बडा सोपा<ref>आसान</ref> है
सब्दासाठी<ref>शब्दों के लिए</ref> जीना मुश्कील है

देख ये मेरा पाय
साक्षीको तेरी आई<ref>माँ</ref> काशीबाय
'मी खाटीक<ref>कसाई</ref> आहे बेटा - मगर
गाभणवाली<ref>गर्भवती गाय</ref> गाय कभी नही काटते ।'

तो - सौराज आला<ref>आया</ref> गांधीवाला
रहम फरमाया अल्ला
खूप जुलूस मनवला चालवालोने
तेरे बापूने -
तेरा बापू चालका भोंपू ।

हां तर मी सांगत होता<ref>कह रहा था</ref>
एक दिवस मी बसला<ref>बैठा </ref>होता कासाईबाडे पर
बकरा फाडून रख्खा होता सीगपर
इतक्यामंदी<ref>इतने में</ref> समोर<ref>सामने</ref> झली बोम<ref>हुआ शोर</ref>
मी धावला<ref>मैं दौड़ा ,देखा </ref> देखा -
गर्दीने<ref>भीड़ ने</ref> घेरा था तुझ्या अम्मीला
काटो बोला
अल्ला हू अकबरवाला
खबरदार मै बोला
सब हसले, बोले,
ये तो साला निकला पक्का हिंदूवाला


"फिर काफिर को काटो !"
अल्लाहुवाला आवाज आला
झगडा झाला ।
सालोने खूब पिटवला<ref>मुझे पीटा </ref> मला
मरते मरते पाय गमवला ।
सच की नाय काशिबाय<ref>काशी बाई</ref> -?


'तो बेटे -
आता आदमी झाला सस्ता - बकरा म्हाग<ref>महँगा</ref> झाला
जिंदगीमध्ये<ref>ज़िन्दगी में</ref> पोरा, पुरा अंधेर आला,
आनि<ref>और ऐसा कौन है जो</ref> सब्दाला
जगवेल<ref>शब्दों को जीवित रखेगा </ref> असा कोन हाये दिलवाला
सबको पैसे ने खा डाला ।'

शब्दार्थ
<references/>