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शीघ्र ही नाँय शीघ्रतर आबै / नवीन सी. चतुर्वेदी
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शीघ्र ही नाँय शीघ्रतर आबै।
अब तौ अच्छी सी कछ खबर आबै॥
कोउ तौ उन अँधेरी गैलन में।
रात कों जाय दीप धर आबै॥
राह तौ बीसियन मिलीं मग में।
अब जो आबै तौ रहगुजर आबै॥
मेरी उन्नति कौ मोल है तब ही।
जब समस्तन पै कछ असर आबै॥
है अगर सच्च-ऊँ गगन में वौ।
एक-दो दिन कों ही उतर आबै॥
बा कौ उपकार माननों बेहतर।
जा की बिटिया हमारे घर आबै॥
जुल्म की धुन्ध में, भलाई की।
"घाम निकरै तौ कछ नजर आबै"॥