भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शीतलहर जाय छै / मुकेश कुमार यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुर्ख-सर्द ओस बूंद।
पलास, वट आँख मूंद।
ठहार जाड़ कहर धूंध।
बिखेर सूर्य विकिर्ण प्रकाश।
हताश शीत क्षुब्द उदास।
कहर यहाँ ढाय छै।
शीत लहर जाय छै।
ठिठुर पंख मुड़-मुड़।
बिछुड़ संग कुड़-कुड़।
कपोल काग दूर भाग।
निशंक मन मोह त्याग।
नया नीड़ बनाय छै।
शीत लहर जाय छै।
असंख्य जीव प्राण मोह।
सियार, सांप, झिंगुर, गोह।
नदी, तालाब, नहर, झील।
गेहूँ, गुलाब, मटर खिल।
बिखेर गंध मकरंद मंद।
मानव मन समाय छै।
शीत लहर जाय छै।
बाल, वृद्ध, बीमार दिन।
जीयै छै घड़ी गिन-गिन।
वस्त्र विहीन भिन्न-भिन्न।
छिन्न-भिन्न विभिन्न हीन।
रात भर कराय छै।
शीत लहर जाय छै।