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शीतल छाँव-हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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101
शीतल छाँव
जहाँ धरे पाँव ये
मेरी बहन ।
102
पीठ है खुली
कुछ वार करेंगे
यार करेंगे।
103
मरने के सौ
तो हज़ार बहाने
हैं जीवन के
104
चकाचौंध की
इस नगरी में आ
हम खो गए ।
105
पके आम से
सहज चुए रस
हाइकु वैसे ।
106
दर्द था मेरा
मिल शब्द तुम्हारे
गीत बने थे ।
107
पता चला न
किस पल अपने
मीत बने थे ।
108
मृग बावरा
है नाभि में कस्तूरी
कभी न जाने ।
109
गुणी जो होता
निज मन- चंदन
न पहचाने ।
110
जीवन-घट
जब जितना ढरे
उतना भरे ।
111
अविश्वासी जो
विश्वास कब करे
जिए या मरे ।
112
काँटे जो मिले
जीवन के गुलाब
उन्हीं में खिले ।
113
मोती न सही
 हैं बहुत कीमती
आँसू तुम्हारे ।
114
पैसे की भूख
बनी जो ज्वालामुखी
करेगी दुखी ।
115
 क्रूर ये सत्ता
छीन लेती है छत,
कौर व लत्ता ।
 116
दफ़्तर गुफा
हैं छिपे रक्तपायी
जीव लापता ।
117
सच्चा लगाव
मिटा गया पल में
सारे अभाव ।
118
आरोप सभी
लिखे अपने नाम
मिला आराम ।
119
 मन में छल
तो छलकेगा कैसे
सुधा का घट।
120
वीणा के तार
कसोगे सही तभी
गूँजेगा राग।
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