भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शील सन्तोष / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरनी सुनाई भाई लीजे सबसों भलाई, कीजै सेवकाई दुनियाई जाँलों जीजिये।
माया जगदीश्याकी जहाँ तो ज देखो आनि, दानी कौन कावरे वडाई जाकी कीजिये॥
साधुकी न संगति भगति जाहि भावे नाहि, ताके मुख देखियत पानि जनि पीजिये।
छाजन और भोजन धराओ धरो ठाम आनि, राम को गुलाम जानि देइ ताको लीजिये॥26॥