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शील सन्तोष / शब्द प्रकाश / धरनीदास

धरनी सुनाई भाई लीजे सबसों भलाई, कीजै सेवकाई दुनियाई जाँलों जीजिये।
माया जगदीश्याकी जहाँ तो ज देखो आनि, दानी कौन कावरे वडाई जाकी कीजिये॥
साधुकी न संगति भगति जाहि भावे नाहि, ताके मुख देखियत पानि जनि पीजिये।
छाजन और भोजन धराओ धरो ठाम आनि, राम को गुलाम जानि देइ ताको लीजिये॥26॥