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शीशमहल कुछ एक ने क्या हुआ गर बना लिये / दरवेश भारती
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शीशमहल कुछ एक ने क्या हुआ गर बना लिये
रंज न कीजिये कि संग आप भी एक उछालिये
आइये,मिल के तय करें, प्यार की हर हसीं डगर
दिल है महब्बतों का घर, दिल से गिले निकालिये
वक़्त बदल चुका है आज, वक़्त का देखिये मिज़ाज
खुद में न वक़्त ढालिये, वक़्त में खुद को ढालिये
देखता रह गया समाज, विष भी असर न कर सका
कुछ इस अदा से मीरा ने मन में सजन बसा लिये
वो न कभी सुलझ सकी, बात जो भी उलझ गयी
रिश्तों में पेचो-ख़म ज़रा सोच-समझ के डालिये
एक ख़ुदा को छोड़कर सज्दा करे है दर-ब-दर
आज हर एक शख़्स ने कितने ख़ुदा बना लिये
तेरी रिज़ा को है सलाम, तेरी अता क़बूल है
तूने दिये जो रंजो-ग़म, हँस के तमाम उठा लिये