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शीशे की चिड़िया / तरुण

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हमारे घर के वॉश बेसिन पर
एक बड़ा शीशा टँगा है, जिस पर उड़-उड़कर
गाहे-बगाहे एक चिड़िया आती है,
सिकुड़ कर, पंख झाड़-झटकार फटकार कर
मेरिजुवाना खायेसी बौखलाती है, भकुआती है,
अपनी तीखी, मजबूत चोंच से प्रतिबिम्बी चोंच को
खोद-खोदकर, टाँच-टाँच कर लिपट-झपट कर
टकराती है/आज तो हर कीमत पर-
जैसे-भीतर वाली से जीवन के फैसले वाला एक कॉम्पीटिशन है!
एक जिद है, एक मिशन है!
आज, सामने एक कितनी बड़ी चुनौती है-
दुनिया में मुझसे बड़ी कौन होती है?
बेल्जियमी शीशे से ही सही
तीखी मजबूत चोंच हो जायगी लहूलुहान,
संकल्प भी पक्का है-
”बस चाहे निकल ही जाने दो आज तो प्राण!“

हठ है, जिजीविषा है, दर्प है,
चंचल, दो रत्ती लघु वज्र काया में, राई के दाने से हिमालयी अहं का
फुंकार उठा एक मणिधर सर्प है!
यह चिड़िया है अपनी मौत से अनभिज्ञ-
या चुनाव हारा कोई राजनीतिज्ञ?

1987