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शीशे की दीवार में बंद / श्याम कश्यप बेचैन

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शीशे की दीवार में बंद
मछली तड़पे जार में बंद

सब कुछ है अंधियार में बंद
सूरज काले ग़ार में बंद

घूम रही कश्ती-सी दुनिया
गिर्दाबी रफ़्तार में बंद

किसने इकतारा छेड़ा है
सब कुछ है झनकार में बंद

फूँको-फूँको ज़ोर से फूँको
लपटें हैं अंगार में बंद

बरखा इन आँखों में बसना
होना जब तुम क्वार में बंद