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शीशै को शुक्रिया में बदलते हुए / देवेश पथ सारिया

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भारत को विचित्र आँखों से देखता हुआ
नौ साल बाद मैं ताइवान से लौट आया हूँ
स्वदेस की परिभाषा एक अनुत्तरित प्रश्न है

ब्लूबेरी क्रम्बल की याद में
खाता हुआ गाजर का हलवा
मैं दोबारा अपने परिवार के बीच
लंबे समय तक रहना सीख रहा हूँ

हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह में
जियारत करते हुए
मेरे हाथ में है देसी गुलाब की भेंट
मेरी याद में हैं प्लम ब्लॉसम के पेड़

एक अरसे बाद छुए
मिट्टी लगे नए आलू
मेरे बचपन में क़स्बे की सब्जी मंडी में
बैठने वाली तब की नवविवाहिताएँ
अब माई कही जाने लगी हैं;
क्या ताइवान में किसी ने इस महीने
'सूसू'* कहा होगा
मीठी मुस्कान वाले उस आदमी को
जो आरटी मार्ट में
फलों पर प्राइस टैग लगाता था?

न ताइवान जैसी छोटी, न राजस्थान जैसी बड़ी
मेरी हाल की कविताओं में
मध्यम आकार की आँखों वाली काल्पनिक लड़कियाँ हैं
इतने भले पंछी हैं कि बचपन का सुलेख याद आता है—
फलां पक्षी एक भोला पक्षी है।

ताइवान के आसपास के पानी में
अब भी घूम रहे हैं चीनी युद्धपोत
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आकर
मैं फ़िक्रमंद हूँ—
आख़िर कब तक बच पाएगा
वह छोटा-सा लोकतांत्रिक जज़ीरा
जिसे दुनिया के ज़्यादातर मुल्क
बाक़ायदा एक मुल्क भी नहीं मानते।

  • चाइनीज़ में 'थैंक यू' को 'शीशै' और 'अंकल' को 'सूसू' कहते हैं।