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शीशों के घरों वाले पत्थर क्यों उठाये हैं / उर्मिल सत्यभूषण

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शीशों के घरों वाले पत्थर क्यों उठाये हैं
वो जिनके सताये हैं, खुद उनके ही साये हैं

बेपर्दा करेंगे हम अपने तो इरादे हैं
सतरंगी पर्दों में जो चेहरे छुपाये हैं

वहशत ने हसीं चेहरे धूमिल कर डाले हैं
हंसते हुये चेहरों पर जंगल उग आये हैं

नाकाम करेंगे हम जुल्मत के इरादों को
संकल्प किये हमने अब हाथ उठाये हैं

अब आँख है चिंगारी शोले बरसायेगी
जिस आँख ने जीवनभर आंसू ही बहाये हैं

हम वक्त के धारे को बदलेंगे तो दम लेंगे
ज़लती हुई राहों पर ये कदम बढ़ाये हैं

ये मौत से खेलेंगे, तूफान को झेलेंगे
ये दीप इरादों के उर्मिल ने जलाये हैं।