शुकदेव जी रोॅ वैराग्य / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
व्यास जी केरोॅ मनोॅ में अन्न इच्छा जगलोॅ छेलै
विवाह करै केरोॅ मन बनाय लेनेॅ छेलै ।
जावालिक मुनि रोॅ कन्या अति सुन्दरी छेलै
गुणवान, लावण्य, मृदुभाषी, दुलारी छेलै ।
दू नामोॅ सेॅ पुकारै छेलै, पुत्राी एक छेलै
चोटिका आरो पिंगला नाम धरनै छेलै ।
व्यास जी पिंगला सुकन्या सेॅ विवाह रचने छेलै
पिंगला कुछ महीना रोॅ बाद गर्भ धारण करलकै ।
गर्भ में शुकदेव जी के प्रार्दुभाव होलोॅ छेलै
गर्भ में बारह बरस तक ठहरलोॅ छेलै ।
माता रोॅ कोखी में वेद-पुराण कंठस्थ करनें छेलै
धर्मशास्त्रा, मोक्षशास्त्रा रोॅ अभ्यास करनें छेलै ।
बहारोॅ मेॅ पाठ करे में कोय भूल करै छेलै
शुकदेव जी गर्भ सेॅ डांट सुनावै छेलै ।
गर्भ मेॅ ज्यों-ज्यों बड़ोॅ होय रहलोॅ छेलै
माता जी रोॅ बेचैनी आरोॅ पीड़ा बढ़लोॅ जाय छेलै ।
पत्नी रोॅ दुःख देखी केॅ व्यास पूछै छेलै
तोहें बाहर कहिनैं नैं आवे छौ ।
भीतर सेॅ जबाब देलकै,µसब्भेॅ योनी मेॅ घूमी गेलोॅ छियै
चोरासी लाख योनि पूरा करी चुकलियै ।
व्यास बोलै छै, तोहें बाहर कहिनें नै होय छोहोॅ
बारह बरस पूरा करला रोॅ बाद आपनैं बाहर होय जैवै ।
वैष्णवी माया रोॅ स्पर्श से ज्ञान हवा-हवाई होय जैतै
गर्भ मेॅ योग, मोक्ष, सिद्धि करै रोॅ मन बनाय लेनें छियै ।
आश्वासन पावी केॅ गर्भ सेॅ बाहर निलकलै
बंधनग्रस्त, संस्कारोॅ सेॅ जकड़लोॅ छेलै, आबेॅ निकललै ।
जातक संस्कार द्विज बालक केॅ ब्रह्मचर्य श्रम छियै
जरूरी छै वेदाध्ययन मेॅ पठन-पाठन करे के ।
सन्यास श्रम में दाखिल होय लेॅ पढ़ै छै
तबेॅ मानव केॅ मोेक्ष प्राप्त होय छै ।
तबेॅ नपुंसक केॅ सर्वदा हेकरोॅ फल मिलै पारै छै
गृहस्थाश्रम सेॅ सब्भै केॅ मोक्ष मिले पारे छै ।
व्यास देव बोललै, सदगृहस्थ लोक-परलोक सुखद छै
दैवयोग आग कहियोॅ शीतल बनेॅ पारै छै ।
निशापति सेॅ कोय सुखी होवेॅ पारै छै
परिग्रह सेॅ कोय सुखी होवेॅ पारै छै ।
त्रिकाल मेॅ असंभव लगी जावेॅ पारे छौ
व्यास बोललै, पुण्य सें मानव तन मिलै छै ।
गृहस्थाश्रम मेॅ ठीक ढंग सें चलला पर ज्ञान मिलै छै
शुकदेव कहै छै, जन्म लेतै ज्ञान काफूर होय जाय छै ।
गृहस्थाश्रम में तसब्बुर करना फिजूल छै
व्यास कहै छै यमलोक भयंकर दोजख छै ।
पुत्राहीन मनुष्य सर्वदा वहीं जाय छै
शुकदेव कहे छै, पुत्रा स्वर्ग प्राप्त रोॅ सोपान छै ।
पुत्रा रोॅ प्रशंसा होय छै, निःसन्तान दोजख जाय छै
पुत्रा प्राप्ति सेॅ पितृऋण सेॅ मुक्त होय जाय छै ।
पौत्रा सेॅ देवऋण सेॅ मुक्त होय जाय छै
प्रपौत्रा केरोॅ दर्शन सेॅ जन्नत प्राप्ति होय छै ।
आपनोॅ शास्त्रा-पुराणोॅ में है बातोॅ के जिक्र छै
शुकदेव कहै छै, गिद्ध दीर्घ जीवी होय छै ।
पौत्रा-प्रपौत्रा होकरोॅ दृष्टि में नगण्य छै
शुकदेव विरक्त होय केॅ वन के लेली प्रस्थान करै छै ।