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शुक्रिया यूँ अदा करता है गिला हो जैसे / शीन काफ़ निज़ाम
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शुक्रिया यूँ अदा करता है गिला हो जैसे
उस का अंदाज़ ए बयाँ सब से जुदा हो जैसे
यूँ हरिक शख़्स को हसरत से तका करता हूँ
मेरी पहचान का कोई न रहा हो जैसे
ज़िंदगी हम से भी मिलने को मिली है लेकिन
राह चलते हुए साइल की दुआ हो जैसे
यूँ हरिक शख़्स सरासीमा नज़र आता है
हर मकाँ शहर का आसेबज़दा हो जैसे
लोग हाथों की लकीरें यूँ पढ़ा करते हैं
इन का हर्फ़ इन्होंने ही लिखा हो जैसे
वास्ता देता है वो शोख़ खुदा का हम को
उस के भी दिल में अभी खौफ़-ए-खुदा हो जैसे
इस तरह जीते हैं इस दौर में डरते डरते
ज़िंदगी करना भी अब एक ख़ता हो जैसे