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शुक्र वो जान गई, फिर आई / वली दक्कनी

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शुक्र वो जान गई, फिर आई
ऐश की आन गई, फिर आई

तेरे आने सिती ऐ राहत-ए-जाँ
शहर की जान गई, फिर आई

फिर के आना तिरा है बाइस-ए-शौक़
जिस तरह तान गई, फिर आई

तेरे आने सिती ऐ माया-ए-हुस्‍न
ऐश की शान गई, फिर आई

ऐ 'वली' क़ंद-ए-मुकर्रर है ये बात
शुक्र वो जान गई, फिर आई