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शुद्ध जब विचार बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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शुद्ध जब विचार बा
सब जगह दुलार बा

आँख खोल के चलीं
ना कहीं अन्हार बा

मन वसन्त बा अगर
हर घड़ी बहार बा

झूठमूठ नाज बा
जिन्दगी उधार बा

नाव जब बढ़त चलल
दूर कब किनार बा

लेखनी चलत रहल
आ रहल निखार बा