भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शुभ दिन आया / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
					
										
					
					शुभ दिन आया 
और हवाओं में रँग बिखरे 
कैसे क्वाँरे
 
आओ सजनी, देखें चलकर 
इंद्रधनुष निकला है छत पर 
 
शुभ दिन आया 
रात हुई बरखा में भीगे 
फूल लग रहे कितने प्यारे 
 
ऋतु-नहाई है धूप लॉन पर 
चंपा से है ओस रही झर 
 
शुभ दिन आया 
बाँचें हम भी रंग पर्व के 
भीतर जो इतिहास हमारे  
 
पत्तों पर गुलाल बिखराकर
भोर लिख रहा ढाई आखर 
 
शुभ दिन आया 
बौराई है अमराई भी 
कोयल ने ऋतुमन्त्र उचारे
	
	