शुभ नव प्रारब्ध / संगीता शर्मा अधिकारी
ऑफिस की मुर्दा फाइलों को
उन कूटनीतिक चालों को
डिस्को में थिरकते पांवों को
पीपल की ठंडी छांव को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
छलकते मदिरा के प्यालों को
मां के हाथों के छालों को
शिशिर की ठिठुरती रातों को
तेरी प्यारी-सी बातों को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
घर-भर में फुदरती गौरैय्या को
भवसागर की नैया को
भोर की प्रथम उजास को
मेरी उस अमिट प्यास को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
इस वासंती मेले को
पतझड़ के नीरस रेले को
धूल-धूसरित ठेले को
बाबा के अंतिम धेले को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
बिटिया की बढ़ती लरज को
बेटे की पल्लवित गरज को
मां-पापा के पैरों की रज को
अपने अस्तित्व की समझ को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
उन कसती फब्तियों को
पोषित करती पीठों को
हर एक खरपतवार को
खंजर के हर उस वार को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
पल-पल रेंगते जीवन को
भूख से बिलखते बचपन को
शिविरों के बढ़ते व्यापार को
वृद्धाश्रमों में जीवन के सार को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
बचपन के सभी मितों को
धोखेबाज उन गीतों को
बुढ़ापे की लाठी को
सुख-दुख की हर एक बाती को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
तुम्हारे हर सहयोग को
दूजों के मानसिक रोग को
कुछ कही-अनकही बातों को
तुम्हारी असीम सौगातों को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
पुनः नव वर्ष की इस दहलीज को
संकल्पों की फेहरिस्त को
असीमित इच्छाओं को
गगन छूने की कामनाओं को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।
सुख शांति समृद्धि को
कोरोना से मुक्ति को
मास्क, सैनिटाइजर, डिस्टेंसिंग को
कोरोना वॉरियर्स की हिम्मत की
ब्रह्मांड की समस्त शुभ संवेदनाओं को
वैमनस्य की सभी दुर्भावनाओं को
शुभ नव प्रारब्ध
शुभ नव प्रारब्ध।