भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास।
टूटती जाती दृगो की आस॥
है समस्या कठिन पग पग पर चुभाती शूल
बढी राहें रोक लेती है जरा सी भूल।
टूट जाता स्नेह का विश्वास।
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास॥
जिंदगी है मात्र तन का प्राण से संबंध ,
विश्व जय के हेतु करता नित नये अनुबंध।
रचा जाता है नया इतिहास।
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास॥
नीरसा मरुभूमि सा लुटता बिखरता स्नेह
कौन जाने कब सदय होगा अमृतमय मेह।
है हृदय करता नये आयास।
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास॥
दूर प्रिय का गांव विरहिन सा विकल वुर आज
नैन जल मधुमास बन सजते मिलन का साज।
मधुर सपने हैं न आते रास।
शुष्क अधरों पर मचलती प्यास॥