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शून्य छी अहाँ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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चलैत गाड़ी सँ बोकरि देलक
पीक- पित्त जकाँ अपवर्ज्य
जर्दा जे लागि गेल छल
मुदा ताहि सँ की?
गाड़ी त' रोकि देबाक चाही
धुर जी छी केहेन मनुक्ख छी अहाँ!
ककरो देहक..
की नहि मान
राखू संज्ञान
छी कतबो धनमान
लोक पयर सँ सेहो चलैछ
एकरो त' धरु धियान
कोनो आन्हर नहि आ ने छी अकान!
तमतमा गेलाह ..कवि जी
देह रक्तभ
सेहो पीक सँ
कविताक छंद आत्मे मे बिला गेलनि
भेख देखने भेंटैछ भीख
छथि त ' नागार्जुन जकाँ
मुदा अनचिन्हार कोना जानय....
बौकार लोक?
आशु कविक दरिद्रा माय
खट्टरकक्काक रमा मौसी सँ
गेल छथि हारि
ओ देखब' लागल
पाइक विहारि...
गाडीबला बड़का लोक छल
ओ भौतिकता सिखबै लगलनि
बात बढ़ैत गेल...
अंत मे तामझामक गाडीबान
देखा देलक धनक अभिमान
"अहाँ शून्य छी "
हमरा लग नहि कोनो मोजर
लगैत छी जोकर...
आँखि मे शोणित सन नोर
पहिलुक बेरि कवि जी केँ..
देखने छलहुँ कनैत
चैम्बर पहुँचैत देरी
देखि कविक हाल
प्राचार्य महोदय बेहाल ..
अप्पन रुमाल सँ
पोछ' लगलनि दाग
हाय रे! कविक भाग?
एक बड़का की केलक
दोसर बड़का की देलक?
एतबे मे चपरासी आयल
आगन्तुकक नेने एकटा कार्ड
बजाओल गेल...
सामने वेयह बड़का
के अभागल छीटलक पीक
कविजी चुप ..
आगंतुक अचंभित
मुदा कविजी देलनि
बात केँ बदलि
नहि बुझलहुँ ..
भागि गेल गाडीबला
जी मे प्राण आयल
जान बाँचल
आब अपन काज सूझल ओकरा
गिड़गिड़ा रहल छल ..
सभ आचार्य सँ भेंट क' क'
अपनेक शरण मे आयल छी
आगन्तुकक जिज्ञासा केँ
प्राचार्य देलनि दाबि..
आब सीट भरि गेल...
अहँक नेना केँ नहि हएत नामांकन
डबडब आंखियें घुरय लागल
बड़का लोक!!!!
रोकि लेलनि कविजी
नीक लोक लगैत छथि
हमरे खातिर दियौंन स्थान
बड़का काठ...
कतय गेलनि ओ आवाज
एखन त' देलकनि
वेयह शून्य काज
माफियो नहि माँगि सकल
दुनू ठोर तागल..
केहेन अछि अभागल
एक ठाम जीतल
मुदा! अपन कथनी सँ
दोसर ठाम हारल...
जौं कनेको हएत विवेकी
त' रहत किछुओ दिन
अपन करनीक मारल