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शून्य होकर / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
शून्य होकर
बैठ जाता है जैसे
उदास बच्चा
उस दिन उतना अकेला
और असहाय बैठा दिखा
शाम का पहला तारा
काफ़ी देर तक
नहीं आये दूसरे तारे
और जब आये तब भी
ऐसा नहीं लगा
पहले ने उन्हें महसूस किया है
या दूसरों ने पहले को!