शून्य / रंजना गुप्ता
कुछ पीड़ा का कम हो जाना
कुछ यादों का थम सा जाना..
एक विवर से नये शून्य तक
बढ़ जाना है ....
बंधी गले में जन्म मरण तक
कर्तव्यों की क्रूर शिलाएँ...
बोझा ढोते युग बीते है
पाँवों के तलवे पथराए...
कुछ संध्या का ढल सा जाना
मन के तलछट का हिल जाना...
अनजाने डर के पर्वत पर
चढ़ जाना है....
प्रश्नाकुल आँखों के घेरे
कुछ रातों के नहीं सवेरे...
बाँस कपास बिजूक़ा वाले
खेतों में साँपों के डेरे ....
कुछ मिथकों का सच हो जाना
कुछ सच का मिथ्या हो जाना...
पन्ने पन्ने यही ककहरा
पढ़ जाना है .....
झूठा पल झूठे है लम्हें
केवल दर्द हमारा होगा....
ऊँगली से भी छुआ नीर को
तो पोखर भी खारा होगा...
जब तब आँखों का भर आना
मुठठी से कण कण झर जाना....
काँप रहे अधरों की भाषा
गढ़ पाना है .....