शूल चुभा भर गये नयन / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
शूल चुभा भर गए नयन ,
अश्रुओं ने धो लिए सपन॥
कामना हजार की बनी फुहार ,
आशा कोकिल करता नेह की पुकार।
इंद्रधनुष्य से सपने करते मनुहार ,
धड़कन हर माँग रही अपनों से प्यार।
सतरंगी प्यार की किरन ,
रंगों से भर गया गगन।
शूल चुभा भर गये नयन ,
अश्रुओं ने धो लिए सपन॥
अवनि और अंबर का मादक अनुबंध,
गंध फूल माटी का जैसे संबंध।
वात उड़ी तितली ने तोड़ दिए बंध,
बासंती सुमनों में साध की सुगंध।
खिल उठी पलाश की अगन ,
कितनी है मदिर यह जलन।
शूल चुभा भर गये नयन ,
अश्रुओं ने धो लिये सपन॥
हिमगिरि का उन्नत मस्तक हुआ विनत ,
जलनिधि पद पंकज को धो रहा सतत।
इतिहासों की लड़ियाँ हार बनी शत ,
गंगा की लहरों पर नाचता विगत।
पुलकित अंगों की सिहरन ,
धरती स्वातंत्र्य की दुल्हन।
शूल चुभा भर गये नयन ,
अश्रुओं ने धो लिये सपन॥