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शेड कार्ड और पटरियाँ / अनुराधा सिंह

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लौट आना है उसी जगह
जहाँ आँगन में सूखते कपड़े
भीग जाने से पहले मेरी बाट जोह रहे हैं
पतीले में खौलता दूध
रुकने या उफन जाने की
कशमकश में है
और चादर और परदे इतने
आहिस्ता आहिस्ता रंगहीन हो रहे हैं
कि मेरा उन पर नज़र रखना बड़ा ज़रूरी है
बड़े गौर से नज़र रखती हूँ इन सब पर
और घंटों, महीनों, सालों
चर्चा करती रहती हूँ इन सब अहम मुद्दों पर
जो ज़िन्दगी को पटरी पर रखते हैं
कभी कभी बिलकुल खाली
और बेकार वक़्त में सबसे छिपकर
सोच लेती हूँ
अंदर कुछ खौलने और उफन जाने की कशमकश
बादलों के इश्क़ पेंचा को बिना छुए
अनायास गुज़र जाने और
ज़िन्दगी से उन सब रंगों
के उड़ जाने के बारे में
जो इस साल एशियन पेंट्स के
शेड कार्ड में नहीं दिए गए थे
फिर ज़िन्दगी की गाड़ी और पटरी के
बारे में सोचती हूँ
और दूध और धोबी का हिसाब
तसल्ली से एक बार फिर लगाती हूँ।