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शेरखान नै मिली कटारी आनन्द होगी काया / मेहर सिंह

वार्ता- सज्जनों शेरखान धन का लोभ देकर दूती को मना लेता है। दूती सोमवती के पास पहुंच जाती है और अपने आप को चापसिंह की बुआ बताती है। कुछ रोज सोमवती के पास रहने के पश्चात दूती वापिस चलने की तैयारी करती है और सोमवती को कहती है कि उसे उन दोनों की बहुत याद आती है। वह उसे कोई ऐसी निशानी दे दे जिसे उनकी याद आने पर देख लिया करूं और अपने मन को तसल्ली दे लूं। सोमवती उसकी बातों में आ जाती है और उसे चापसिंह की अंगुठी, कटारी और पगड़ी दे देती है। दूती ये तीनों निशानी लाकर शेरखान को दे देती है। शेरखान इन चीजों को पाकर फूला नहीं समाता तो कवि उसके मन की स्थिति का क्या चित्रण करता है-

भूखे नै रोटी मिलज्या कंगले नै धन माया
शेरखान नै मिली कटारी आनन्द होगी काया।टेक

ले ले दूती जो जी चाहवै काम बणा दिया मेरा
सदा सुखी तनै याद करूंगा गुण भूलूं ना तेरा
सूख ग्या था खून बदन का आज खिला दिया चेहरा
चापसिंह ने शर्त लाण का तड़कै पाटै बेरा
जाकै दरबारां में दिख्या द्यूंगा भेद मनै सब पाया।

पहले जाकै रजपूतां की खूब करूंगा हांसी
सच्चे धर्म और कर्म कड़ै द्वारका कित कांशी
जाकै ने दिखला द्यूंगा नारी की बदमाशी
देर घणी लाऊं कोन्या तुरंत तुड़ादूं फांसी
दे दूती तै ईनाम शेरखान दरबारा में आया।

लग्या हुआ दरबार चौगरदै बैठे मुल्ला काजी
शेरखान नै आते देख मन मैं हो रहे राजी
आईयो आईयो होण लागी खबर सुणा दो ताजी
मूंछ मरोड़न लाग्या शेरखान ऊपर नै मुंह ठाया।

चापसिंह ने बुलवा ल्यो मैं बात बता द्यूं सारी
रजपूतां के घर पै कोन्या कोए पतिवरता नारी
रजपूतां की नारी गैल्यां कर ली हम ने यारी
मेहरसिंह के ऊपर फेरियो प्रभु जी मेहर तिहारी
उड़ै भरी सभा में जाकै नै यो पुरा हाल सुणाया।