भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेर-1 / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
(1)
कफस1 में खींच ले जाए मुकद्दर या निशेमन2 में,
हमें परवाजे-मतलब3 है, हवा कोई भी चलती हो।
(2)
है हुसूले – आरजू का नाम तर्के -आरजू,
मैंने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे।
(3)
मेरे गुनाहों पर करें तब्सिरा4 लेकिन,
सिर्फ मैं ही तो गुनहगार नहीं।
(4)
बहुत मुश्किल है कैदे-जिन्दगी में मुतमइन होना,
चमन भी इक मुसीबत था कफस भी इक मुसीबत है।
(5)
फकत एहसासे-आजादी ही से आजादी इबारत5 है,
वही घर की दीवार है, वही दीवार, जिन्दा6 की।
1. कफस - पिंजड़ा, कारागार 2. निशेमन - घोंसला, नीड़ 3. परवाज - उड़ान 4.तब्सिरा - आलोचना 5.इबारत - कायम 6.ज़िन्दां - कारागार, जेल