भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेर कहेगा म्याऊँ / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
एक बार मैं बोला-बेटे, माँ से मत घबराना।
अगर तुझे वह डाँटे-मारे तो मुझको बतलाना।
यदि वह तुझे कहेगी कुछ तो उसको हड़का दूँगा।
बेटे, मैं हूँ शेर उसे मैं ढँग से समझा दूँगा।
बेटा बोला-पापा, कैसे बोले शेर बताऊँ।
मैंने कहा-बताओ बेटा, तो वह बोला-म्याऊँ।
मैंने बोला-बेटे, तूने बिलकुल ग़लत बताया।
शेर और बिल्ली में अंतर क्यों तू समझ न पाया।
बेटा बोल-पापा, तुमको ज़्यादा क्या समझाऊँ।
जब आगे हो खड़ी शेरनी शेर कहेगा-म्याऊँ।
प्यारे पापा, अब बोलो क्या मम्मी को डाँटोगे।
अगर सामने हों वह तो क्या ख़ुद को शेर कहोगे।