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शेष अंक / नवनीता देवसेन / मीता दास

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अन्धेरा अमावस बनकर
आकर खड़ा हो जाता है
और ढक लेता है मन को

उसकी यन्त्रणा को वे छू-छूकर
नयनो में
चरण रेणु रख देते हैं ।

फिर भी कहती हूँ,
बिनती है मेरी
अभी न जाना,

यदि आओ —
तो
देऊल में आग जल उठती है जिसके,

न हो तो
शेषांक ही देख जाओ ।

मूल बाँगला से मीता दास द्वारा अनूदित