भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शैतान-1 / भरत ओला
Kavita Kosh से
पांडाल में
ये जो साफे बांधे
बैठे हैं
आदमी नहीं
गोभी के फूल हैं
जितने खिलने थे
खिल लिए
और खिलने की सोचना
तुम्हारी भूल है
अब ये
ठप्पा लगा
पंजा लड़ाएगें
और आपस में उलझ
लड़-मर जाएंगें
बचे-खुचे
रेंगते हुए
तुम्हारे पास आएंगें
और तुम
हमेशा की तरह
सबको प्यार देना
बारी-बारी से
कान में फूंक मारना
और जाते वक्त
हाथ में
हथियार देना
आडू लट्ठ हैं
टम-टमाटम बजाते रहेंगें
और हम
गलबहियां डाले
भाईचारे का मेघ मल्हार
गाते रहेंगें
गुनगुनाते रहेंगें।