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शैदाई समझ कर / कुलवंत सिंह
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शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
घर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मेरे उसने जमीं पर है गिराया।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया।
(शैदाई = चाहने वाला, पर = पंख, परवाज = उड़ान)