शैशव स्मृति-1 (कविता का अंश)
यह, फूलों की मौन माधुरी
यह मृदु हंसी गगन की।
इस, अनन्त सुख के सागर में
डूबी छबि वसुधा की।
मैं बन गया मूक स्वर सुम का
शशि के उर को छू कर
मैं जैसे चुपचाप खो गया,
जा फूलोें के भीतर
(शैशव स्मृति-1 गीत माधवी से)
शैशव स्मृति-1 (कविता का अंश)
यह, फूलों की मौन माधुरी
यह मृदु हंसी गगन की।
इस, अनन्त सुख के सागर में
डूबी छबि वसुधा की।
मैं बन गया मूक स्वर सुम का
शशि के उर को छू कर
मैं जैसे चुपचाप खो गया,
जा फूलोें के भीतर
(शैशव स्मृति-1 गीत माधवी से)