शैशव स्मृति-2 (कविता का अंश)
वह शाखा जिस पर खोला था
प्रेयसि ने अवगुंठन
वैसे ही आकार शान्त से
डुला रही पल्लव अंचल,
कुछ रहस्य- सा कहते फिर भी
तरू-पल्लव-हिलते,
कितने पत्र नवीन आ गये
रे उनसे मिलने
(शैशव स्मृति-2 जीतू से )
शैशव स्मृति-2 (कविता का अंश)
वह शाखा जिस पर खोला था
प्रेयसि ने अवगुंठन
वैसे ही आकार शान्त से
डुला रही पल्लव अंचल,
कुछ रहस्य- सा कहते फिर भी
तरू-पल्लव-हिलते,
कितने पत्र नवीन आ गये
रे उनसे मिलने
(शैशव स्मृति-2 जीतू से )