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शोख मौसम की शरारत हो गयी / रंजना वर्मा
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शोख मौसम की शरारत हो गयी।
लो गुलों को भी मुहब्बत हो गयी॥
जब पवन खुशबू उड़ाकर ले चला
है तितलियों की मुसीबत हो गयी॥
चूम लहरों को हवाओं ने कहा
आपकी हमको ज़रूरत हो गयी॥
वो निगाहें फेर कर जब से गया
दर्दो ग़म की हमको आदत हो गयी॥
जल उठे सब जख़्म घायल आरजू
थी जफ़ाओं की इनायत हो गयी॥
सो गए जज़्बात चादर ओढ़ कर
आज उल्फ़त से अदावत हो गयी॥
सिर चढ़े जिस पल वतन की धूल ये
समझना रब की इबादत हो गयी॥