Last modified on 18 मई 2012, at 19:36

शोरगुल के बीच गुम होती आवाजें / विपिन चौधरी

जब दिन बोलता था
रात
चुपचाप सुना करती थी।
ठीक ठाक था
तब तक
बोलने सुनने का
यह सिलसिला।

फिर हुआ यह
दिन तो बोला ही बोला
रात, सुबह, शाम
सभी ने
बेलगाम
बोलना शुरू कर दिया।

अब ये
सारे के सारे पहर
चकचक करते हैं लगातार,
इनके शोरगुल तले
दब कर रह गया है,

एक सिरे से
दूसरे सिरे का संदेश
पक्षियों की कलरव ध्वनि,
हवाओं की सरसराहट,
बारिश की रिमझिम,
मंत्रों की ऊर्जा।

ध्वनियों की दुर्लभ प्रजातियाँ
अब खतम होने के कगार पर हैं।