भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शोर परिंदों ने यु ही न मचाया होगा / कैफ़ी आज़मी
Kavita Kosh से
शोर परिंदों ने यूं ही न मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएगें जब सर पे न साया होगा
मानिए जश्न-ऐ-बहार ने ये सोचा भी नहीं
किसने कांटो को लहू अपना पिलाया होगा
अपने जंगल से घबरा के उड़े थे जो प्यासे
हर सहरा उनको समंदर नज़र आया होगा
बिजली के तार पे बैठा तनहा पंछी
सोचता है की ये जंगल तो पराया होगा