भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शोर / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
जाने किस लहर से
किनारों पर जम रहे हैं
खामोशियों के नमक
डूबती बातें
कोशिश में है तैरने की
कोई आहट हो
और नमक पिघले
पसरी हुई तन्हाईयों से
शोर भले होंगे।